( रिपोर्ट : विवेक शर्मा)
गुना । जिले में महिला संबंधी अपराधों का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा है। अपराधों का यह बढ़ता हुआ ग्राफ न केवल महिलाओं की सुरक्षा पर सवाल खड़ा कर रहा है, बल्कि कानून व्यवस्था की स्थिति पर भी गहरे संदेह पैदा कर रहा है। हालात ऐसे हो गए हैं कि इस वर्ष महिला अपराधों के मामलों में जिले ने अपने अब तक के सबसे ऊंचे आंकड़े छू लिए हैं। यह स्थिति हर नागरिक के लिए भय और चिंता का कारण बन गई है।
मासूम बच्चियों पर दरिंदगी का दौर
हाल ही में दीपावली के पावन अवसर पर एक ऐसी घटना ने जिले में हर किसी को झकझोर कर रख दिया, जिसने पुलिस प्रशासन की कार्यक्षमता और उसकी तत्परता पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए। सिरसी थाना क्षेत्र में मात्र 10 साल की एक मासूम बच्ची के साथ बर्बरता का मामला सामने आया। इस दर्दनाक घटना के कई दिन बीत जाने के बावजूद पुलिस अभी तक उस आरोपी को गिरफ्तार करने में नाकाम रही है।
अभी यह घटना पूरी तरह शांत भी नहीं हुई थी कि एक और अमानवीय घटना ने जिले को हिलाकर रख दिया। इस बार केवल 8 साल की मासूम बच्ची को हैवानियत का शिकार बनाया गया। इन घटनाओं ने लोगों के दिलों में आक्रोश और भय का संचार किया है। माता-पिता अपने बच्चों की सुरक्षा को लेकर बेहद चिंतित हैं और यह सवाल कर रहे हैं कि आखिर पुलिस ऐसे गंभीर अपराधों को रोकने में क्यों विफल हो रही है?
पुलिस की विफलता और जनता का आक्रोश
हालांकि कुछ चुनिंदा मामलों में पुलिस ने आरोपियों को गिरफ्तार कर सफलता पाई है, लेकिन अधिकांश घटनाओं में अपराधी पुलिस की पकड़ से बाहर हैं। ऐसी नाकामी ने जिले की कानून व्यवस्था पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। जनता के बीच यह चर्चा जोर पकड़ रही है कि क्या पुलिस का अपराधियों के साथ कोई गठजोड़ है, जो अपराधी खुलेआम जिले में बेखौफ होकर ऐसी घिनौनी घटनाओं को अंजाम दे रहे हैं?
पुलिस की इस विफलता से यह भी सवाल खड़ा होता है कि आखिर वह कौन सी शक्ति है जो इन अपराधियों को संरक्षण दे रही है, जिससे वे निडर होकर अपराध कर रहे हैं? कानून की कमजोर पकड़ से अब ऐसा प्रतीत होने लगा है कि अपराधियों में प्रशासन का कोई भय नहीं रह गया है। वे निरंतर अपने अपराध को अंजाम देने से नहीं हिचकिचा रहे।
जनता का बढ़ता आक्रोश और प्रशासन से जवाबदेही की मांग
महिला संबंधी अपराधों के बढ़ते आंकड़े और प्रशासन की सुस्त कार्यप्रणाली से लोगों में गहरी नाराजगी है। हर नई घटना के साथ ही जनता का आक्रोश और असंतोष बढ़ता जा रहा है। लोग अब खुलकर सवाल कर रहे हैं कि आखिर महिलाओं और बच्चियों की सुरक्षा की जिम्मेदारी किसकी है? क्या पुलिस प्रशासन अपराधियों को गिरफ्तार करने में नाकाम रहेगा और नागरिकों को खुद ही अपने परिवार की सुरक्षा करनी पड़ेगी?
इस स्थिति में जिले के लोगों ने पुलिस प्रशासन से जवाबदेही की मांग की है। अपराधों के तेजी से बढ़ते आंकड़े और पुलिस की निष्क्रियता ने लोगों को यह सोचने पर मजबूर कर दिया है कि कहीं प्रशासनिक तंत्र में कोई गंभीर खामी तो नहीं है। कानून व्यवस्था की यह ढीली हालत अपराधियों के हौसले बढ़ा रही है और जनता के मन में भय पैदा कर रही है।
प्रशासन के लिए चुनौती: कब मिलेगी मासूम बच्चियों को न्याय?
इस गंभीर स्थिति में यह प्रशासन के लिए एक बड़ी चुनौती बन चुकी है कि वह कैसे जनता का भरोसा दोबारा हासिल करे और जिले में कानून का शासन स्थापित करे। मासूम बच्चियों के साथ दरिंदगी की यह घटनाएं न केवल महिला सुरक्षा के प्रति प्रशासन की प्रतिबद्धता पर सवाल खड़ा करती हैं, बल्कि यह दर्शाती हैं कि कानून व्यवस्था कितनी लचर हो चुकी है।
आखिर, प्रशासन के समक्ष सवाल खड़ा है कि वह किस तरह से इन अपराधों पर अंकुश लगाएगा और जिले में महिलाओं व बच्चियों की सुरक्षा को प्राथमिकता देगा। जनता अब उम्मीद कर रही है कि पुलिस प्रशासन इस चुनौती को स्वीकार करते हुए अपराधियों को गिरफ्तार कर सख्त सजा दिलाएगा ताकि भविष्य में कोई अपराधी ऐसे जघन्य अपराध करने का साहस न कर सके।